***********************************************मालवीय मिशन शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र, शिक्षाशास्त्र विभाग द्वारा आयोजित मल्टीडिसिप्लीनरी रिफ्रेशर कोर्स का चौथा दिन **********************************************
वॉयस ऑफ बनारस।
वाराणसी। मालवीय मिशन शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र, शिक्षाशास्त्र विभाग, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ द्वारा आयोजित मल्टीडिसिप्लीनरी रिफ्रेशर कोर्स के चौथे दिन शुक्रवार को भारतीय ज्ञान परंपरा पर विशेष व्याख्यान हुआ। प्रथम सत्र में संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, पाली एवं थेरवाद विभाग के अध्यक्ष प्रो. रमेश प्रसाद ने भारतीय ज्ञान परंपरा में बौद्घ दर्शन’ विषय पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि बौद्ध दर्शन में दुःख, दुःख का कारण, दुःख निरोध एवं दुःख के निवारण पर विशेष जोर दिया गया है। उन्होंने अविद्या एवं तृष्णा को जगत के दुःख का प्रमुख कारण बताया क्योंकि मानव अज्ञानता के कारण लोभ में फंसकर गलत कर्म करने लगता है जो दुःख का कारण बनता है।
तथागत गौतम बुद्ध ने सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक कर्मांत, सम्यक आजीव, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति एवं सम्यक समाधि को दुःख निवारण हेतु आवश्यक माना है। तथागत बुद्ध ने सनातन की अवधारणा को व्यक्त करते हुए कहा कि बैर से बैर को जीतने की बजाय बैर को अबैर से ही जीता जा सकता है, यही सनातन है।
द्वितीय सत्र में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शारीरिक शिक्षा विभाग की प्रो. अर्चना चहल ने गुणवत्तापूर्ण जीवन के रूप में योग को स्थापित करते हुए कहा कि योग में वर्णित यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा एवं समाधि का अपने जीवन को सफल बना सकते हैं, यही भारतीय ज्ञान परम्परा का मूल आधार है। उन्होंने बताया कि योग की समस्त क्रियाएं पूर्ण रूप से वैज्ञानिक हैं जिसके कारण आज पूरा विश्व योग के महत्व को स्वीकार करता है। स्वागत करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. सुरेंद्र राम, संचालन संचालन विनय सिंह, परिचय प्रो. रमाकांत सिंह एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रेशम लाल ने किया।