***************************************** संस्कृत की महत्ता पर बल, सरकार और लोकसभा अध्यक्ष के संरक्षण प्रयासों की सराहन *****************************************
वॉयस ऑफ बनारस।
वाराणसी। सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने संसद में डीएमके (DMK) नेता श्री दयानिधि मारन द्वारा संस्कृत भाषा के विरुद्ध दिए गए घिनौने और अपमानजनक बयान की कड़ी भर्त्सना की है। उन्होंने कहा कि संस्कृत भारत की ज्ञान-परंपरा की आत्मा है, और इस भाषा का विरोध करना भारतीय संस्कृति, परंपरा एवं सभ्यता पर हमला करने के समान है।
कुलपति प्रो. शर्मा ने कहा कि संस्कृत न केवल भारत की प्राचीनतम भाषा है, बल्कि वैश्विक स्तर पर ज्ञान, विज्ञान, चिकित्सा, गणित, दर्शन, योग और साहित्य की आधारशिला रही है। संस्कृत को यूनेस्को सहित कई अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने सबसे वैज्ञानिक भाषा के रूप में मान्यता दी है। ऐसे में संसद में इस भाषा के विरुद्ध अनर्गल टिप्पणी करना भारतीय अस्मिता और सांस्कृतिक धरोहर का घोर अपमान
इस संदर्भ में, प्रो. शर्मा ने संस्कृत भाषा के उत्थान और संरक्षण के लिए केंद्र सरकार तथा लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला द्वारा किए जा रहे प्रयासों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार संस्कृत भाषा को नई शिक्षा नीति (NEP 2020) के अंतर्गत पुनर्जीवित करने और इसे मुख्यधारा में लाने के लिए ठोस कदम उठा रही है।
लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला द्वारा संसद में संस्कृत के प्रयोग को प्रोत्साहित करना, प्रश्न पूछने और उत्तर देने की अनुमति देना, और संस्कृत के संवर्धन के लिए सकारात्मक वातावरण तैयार करना अत्यंत सराहनीय है। इससे न केवल भारत के प्राचीन ग्रंथों और शास्त्रों की प्रासंगिकता बनी रहेगी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी संस्कृत अध्ययन के प्रति प्रेरणा मिलेगी।
कुलपति प्रो. शर्मा ने स्पष्ट रूप से कहा कि संस्कृत विरोधी मानसिकता भारत विरोधी मानसिकता के समान है, क्योंकि यह भाषा भारत की आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक उन्नति का प्रतीक रही है। उन्होंने कहा कि डीएमके नेता का यह बयान तुच्छ राजनीतिक लाभ के लिए भारतीय संस्कृति को कमजोर करने का प्रयास है, जिसे किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
उन्होंने सरकार से मांग की कि संस्कृत भाषा का अनादर करने वाले लोगों के विरुद्ध उचित कार्यवाही की जाए और भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए ठोस नीतियाँ बनाई जाएँ।
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी संस्कृत भाषा के संरक्षण, संवर्धन और शोध कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए कृतसंकल्पित है। कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने विद्वानों, शिक्षकों, छात्रों और संस्कृत प्रेमियों से अपील की कि वे इस प्राचीन भाषा के प्रचार-प्रसार और अध्ययन-अध्यापन के लिए संगठित होकर कार्य करें।
संस्कृत केवल अतीत की भाषा नहीं बल्कि भविष्य की भाषा है–
“संस्कृत केवल अतीत की भाषा नहीं, बल्कि भविष्य की भी भाषा है। इसे संरक्षित करना हमारा सांस्कृतिक और राष्ट्रीय कर्तव्य है। सरकार और लोकसभा अध्यक्ष का यह प्रयास निश्चित रूप से संस्कृत के पुनर्जागरण का युग लेकर आएगा।